2024/04/07

भर्तृहरि का शब्द-ब्रह्म दर्शन (1) Bharthhari' Philosophy SHABDA-BRAHMA |...


Transcript


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आज दिनभर तरीका हम बिखर कर रहे हैं वह हैं
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जिन्होंने वाक्यपदीय है
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है यह देखिए और व्यक्ति प्रदेश में
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उन्होंने शब्द का रूप
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कि शब्द ही ब्रह्म है
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है ब्रह्म का स्वरूप पूर्ण के बनाया जाना
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है
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हैं और उनका शब्द की ही सकता है
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का अर्थ की कोई सत्ता नहीं है
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कि शब्द का अर्थ व शब्द ही होता है
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को जल का और से पानी-पानी भी तो चाहिए
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कि अ पानी कोई दरगाह तो शब्द बना तो जरूर
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काट हो जाएगा
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है तो सत्ता तो शब्द की है शब्द का अर्थ
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विश्व तो अर्थ जो है वह तो माया की तरह से
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अज्ञान की तरह द्वारा अ
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कि अब शब्द के रूप में आने के रूप में
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देखने के लिए उन्होंने कहा
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है तो नोट करके जो पुराने व्याकरण से उनके
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साथ धैर्य कर्मियों के साथ
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कर दो कि उन्होंने कहा कि शब्द के भी वही
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चुके शब्द राम है
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है तो शब्द के वहीं चार रूप है जो ब्रह्म
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यह ब्रह्म है
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को जागृत अवस्था चार अवस्थाएं हैं इसके अ
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थे जागरण जागृत अवस्था है
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और स्वप्नावस्था है
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और सुषुप्ति अवस्था है और तुरीयावस्था है
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कि यह आत्मा की चार अवस्थाएं होती है और
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यह ब्रह्म की चार अवस्थाएं वेदांत वाले
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मानते हैं
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कि हिना का शब्द के लिए यही चार अवस्था है
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कि भर्तृहरि ना शब्द की चार अवस्थाएं माने
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जागृत अवस्था में जो शब्द है वह शरीर से
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उत्पन्न होता है
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कि भौतिक शरीर से शब्द उत्पन्न होता है और
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भौतिक शरीर के द्वारा ही व्यक्ति होता है
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बहुत ही रूप में उसका व्यक्ति होता है वह
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वाणी का जो बहुत ही रूप है
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तो वहीं वह व्यक्ति भ्रम है ब्रह्म अपने
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आप को व्यक्त कर रहा है वाणी ग्रुप में है
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ये तीन शब्द ब्रह्म अपने आप को व्यक्त
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करता है उसका नाव यात्री
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कि वे आखिरी जो ध्वनि है वह धनी है जो
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शब्द हमारे शरीर के द्वारा पहला होती है
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यह बहुत अधिक शरीर उसको पैदा करता है
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है और यह बहुत ही शरीर का जोन अंतर हिस्सा
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है वहां से पैदा होती है
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है तो इसी को नाद कहा जाता है यह नोट यह
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शरीर से पैदल नाद ही ब्रह्म है
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मैं अब दूसरी है
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कि यह तो बैकरी गई वे आखिरी का सूक्ष्म
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रूप जो है
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कि अंबानी बोलते हैं शब्द बोलते हैं तुझे
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शब्द का अर्थ स्कूल रूपा रहा है
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कि यह शो लोग जगत के रूप में सत्यव्रत हो
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रहा है जगत की व्याख्या हो रही है है तो
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यह जो वाणी कर रूप है वक्री का
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कि यह व्यक्ति जब स्कूल रूप धारण करती है
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तो मदर बन जाती है
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के मध्य में जो है वह शब्द का
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कि ऐसा रूप है हैं जो अभी शुद्ध रूप नहीं
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दिया है केवल
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कि उस कि आकृति का रूप है
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है यानी धातु रूप है या कुछ भी रूप है
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है और यही रूप जब अ
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कि आगे बढ़ता है तो बहुत सूक्ष्म रूप धारण
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कर लेता है
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हैं तो उपर शक्ति बन जाता है
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और पश्यंति ऐसा शब्द है
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ऐसी ध्वनि है
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ऐसा रूप है शब्द का जो अखंड है अनादि है
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इसलिए उसको अक्षर का आ गया है अक्षर जिसका
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शर्म नहीं हो सकता
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हैं जो कभी मिट नहीं सकता
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के अधिकारी है अक्षर में विकार नहीं होता
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हैं अक्षर वैसा का वैसा ही रहता है जाता
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है अक्षर से जब मिलकर के धनिया बनती है तो
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दुनिया विकृत हो जाती हैं तरह-तरह की
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एक-एक अक्षर से किसी और अक्षर के साथ मिला
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तौर पर की धुंधली सी
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है और इससे पहला जो है वह निर्गुण
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है जिसका कोई आकार नहीं
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अनिर्वचनीय ऊपर आ सकते हैं
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हैं तो इस तरह से ना शब्द के क्या रूप कोई
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मान हैं जो हमारे यहां चार अवस्थाएं मानी
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गई हैं
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में बहुत सारे रूक लोग हैं खास तौर पर
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अभिनव गुप्त जाएं वहां पर आपको
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है और पश्यंति को एक ही मानते हैं
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पश्यंती भी ठंडक व शांतिपूर्ण आनंदित
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पश्चात देवी परषोत्तम है
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परषोत्तम पृथ्वी अनिर्वचनीय है
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है उससे पहले कोई शक्ति नहीं है पर आप
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यहीं पर आकर रूप है लेकिन भरी चारों रूप
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मानते हैं
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कि शब्द के चारों है जो
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एक बार व्यक्ति हो रहा है यानी जगत रूप
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क्यों है वह जागृत अवस्था में की जगह
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टी-शर्ट है जागृत अवस्था में शब्द का
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व्यक्ति ही रूप है
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कि इस वैचारिक आधार कंठ है
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में एक कंठ में आकर के स्थित होता है और
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कंठ से जाकर व्यक्ति होता था लगा रहा है
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कि अब भर्तृहरि गया इस सारे रूप को
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कि इस शब्द कोई ब्रह्म मान करके अपना सारा
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दर्शन देते हैं
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झाल